हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन – अटल बिहारी वाजपेयी की अमर रचना
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और महान कवि अटल बिहारी वाजपेयी जी का साहित्यिक योगदान अमूल्य है। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, धर्म और राष्ट्र की महिमा को व्यक्त किया गया है। "हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय" इस रचना के माध्यम से उन्होंने भारतीयता के मूल्यों और विचारों को विशेष रूप से उजागर किया है। इस कविता में अटल जी ने हिंदू धर्म के प्रति अपनी आस्था, वीरता और राष्ट्रप्रेम को बेहद प्रभावी ढंग से व्यक्त किया है।
कविता का सार:
यह कविता न केवल हिंदू धर्म, बल्कि एक समर्पित और वीर भारतीय नागरिक की भावना को प्रकट करती है। अटल जी का यह संदेश स्पष्ट है कि हिंदू धर्म केवल एक धार्मिक विश्वास नहीं है, बल्कि यह एक जीवन पद्धति है, जिसमें सत्य, न्याय, बलिदान, और सर्वकल्याण की भावना समाहित है। कविता में व्यक्त विचारों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि हिंदू धर्म का उद्देश्य आत्मोत्थान के साथ-साथ समाज और राष्ट्र के उत्थान का भी है।
कविता को सजाकर प्रस्तुत करें:
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार।
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार।
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास।
मैं यमराज की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँआधार।
फिर अंतरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिये आया भू पर।
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पीकर।
अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैने वह आग प्रखर।
हो जाती दुनिया भस्मसात, जिसको पल भर में ही छूकर।
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन।
मैं नर, नारायण, नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय।
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं अखिल विश्व का गुरु महान, देता विद्या का अमर दान।
मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग, मैने सिखलाया ब्रह्मज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर घहर, सागर के जल में छहर छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं तेजपुन्ज तमलीन जगत में फैलाया मैने प्रकाश।
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैने अपना जीवन देकर।
विश्वास नहीं यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर।
यदि आज दिल्ली के खंडहर, सदियों की निद्रा से जगकर।
गुंजार उठे ऊंचे स्वर से ‘हिंदु की जय’ तो क्या विस्मय?
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर।
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर।
मैं आया तभी द्रवित होकर, मैं आया ज्ञान दीप लेकर।
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर।
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय।
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैंने छाती का लहु पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल।
मुझको मानव में भेद नहीं, मेरा अन्तःस्थल वर विशाल।
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार।
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राज मुकुट।
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय?
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं वीरपुत्र मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।
अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीनाबाजार ?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाली आग प्रखर ?
जब हाय सहस्त्रों माताएं, तिल तिल कर जल कर हो गई अमर।
वह बुझने वाली आग नहीं रग रग में उसे समाए हूं।
यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
होकर स्वतंत्र मैंने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर में नरसंहार किए?
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी?
भूभाग नहीं, शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
मैं एक बिंदु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज।
मेरा इसका संबन्ध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।
इससे मैंने पाया तन मन, इससे मैंने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण।
मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिंदु तन-मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥
निष्कर्ष:
"हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन" एक ऐसी कविता है जो न केवल हिंदू धर्म की महिमा को उजागर करती है, बल्कि यह हमारी राष्ट्रीयता, हमारी संस्कृति और हमारे कर्तव्यों को भी परिभाषित करती है। अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह रचना आज भी हमारे दिलों में देशभक्ति और सांस्कृतिक गर्व की भावना को जागृत करती है। उनकी यह कविता न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि दुनिया भर के मानवता प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
समाप्ति:
"हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय" कविता को पढ़कर हमें यह एहसास होता है कि हमारे भीतर वही महानता है, जो हमारे इतिहास, हमारे धर्म, और हमारे संघर्षों में समाहित है। अटल जी की यह कविता हमें यह सिखाती है कि अगर हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अपने धर्म, संस्कृति और समाज के लिए जीते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र की भी सेवा करते हैं।